ENG v IND 2025: सचिन तेंदुलकर ने बेन स्टोक्स के हैंडशेक विवाद पर कसा तंज

भारत और इंग्लैंड के बीच खेली गई 2025 की पांच टेस्ट मैचों की सीरीज़ भले ही 2-2 से ड्रॉ हो गई हो, लेकिन इसके चौथे टेस्ट में हुआ हैंडशेक ड्रामा अब भी चर्चा में है। मैच के आखिरी दिन जब भारत के रविंद्र जडेजा और वॉशिंगटन सुंदर ने ड्रॉ की पेशकश पर हाथ मिलाने से इनकार किया, तो बेन स्टोक्स और इंग्लैंड टीम बौखला गई।

अब इस पूरे मामले पर सचिन तेंदुलकर ने अपनी चुप्पी तोड़ी है और बेहद स्पष्ट शब्दों में भारतीय खिलाड़ियों का समर्थन किया है।

क्या था हैंडशेक विवाद?

मैनचेस्टर टेस्ट के पांचवें दिन, जब भारत 311 रन की पिछली कमी से उबरकर मजबूत स्थिति में पहुंच गया था और दोनों बल्लेबाज़ – जडेजा और सुंदर – 80+ स्कोर पर थे, तभी इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स ने ड्रॉ के लिए हाथ मिलाने की पेशकश की।

लेकिन भारतीय बल्लेबाज़ों ने उस वक्त मना कर दिया क्योंकि वे अपने शतक पूरा करने के करीब थे और टीम ने उस स्थिति तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की थी।

इसके बाद इंग्लैंड के कुछ खिलाड़ियों ने ज़बानी छींटाकशी शुरू कर दी और इस फैसले को “स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के खिलाफ” बताया। कई पूर्व क्रिकेटर्स ने इस पर बहस छेड़ दी, लेकिन फिर भी भारतीय खेमा अपने फैसले पर कायम रहा।

जब दोनों शतक पूरे हो गए, तब भारत ने ड्रॉ स्वीकारा

हालांकि, बाद में जैसे ही जडेजा और सुंदर ने अपने शतक पूरे किए, भारत ने ड्रॉ स्वीकार कर लिया। इस पूरी स्थिति में सबसे ज़्यादा उलझन में नजर आए अंपायर, जो मैदान के बीच में खड़े होकर इस ‘ना-हां’ की स्थिति को संभालने की कोशिश कर रहे थे।

सचिन तेंदुलकर की दो टूक – “Why should they?”

अब, जब सीरीज़ खत्म हो चुकी है और धूल बैठ चुकी है, तब सचिन तेंदुलकर ने इस पर खुलकर अपनी राय दी है। Reddit पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में सचिन ने कहा:

“वॉशिंगटन ने शतक लगाया, जडेजा ने भी। तो इसमें क्या गलत है? वे ड्रॉ के लिए खेल रहे थे। उससे पहले, उन्होंने तब लड़ाई की जब इंग्लैंड पूरी ताकत से उन्हें आउट करने की कोशिश कर रहा था।”

सचिन यहीं नहीं रुके, उन्होंने स्टोक्स की सोच पर सवाल उठाते हुए कहा:

“सीरीज़ ज़िंदा थी, तो वे क्यों हाथ मिलाते और इंग्लैंड के बॉलर्स को पांचवे टेस्ट से पहले आराम दे देते? अगर बेन स्टोक्स को गेंद हैरी ब्रूक को देनी थी, तो वो उनका फैसला था, भारत की जिम्मेदारी नहीं।”

“They weren’t playing for centuries, they were playing to save the match”

सचिन ने इस बात पर भी जोर दिया कि जडेजा और सुंदर अपने शतक के लिए नहीं, बल्कि टीम को मैच बचाने के लिए खेल रहे थे। उनके मुताबिक:

“जब वे क्रीज पर आए, तब हैरी ब्रूक गेंदबाज़ी नहीं कर रहे थे। तो फिर भारत क्यों इंग्लैंड के बॉलर्स को आराम दे? क्या आपके पास इसका जवाब है? नहीं!”

तेंदुलकर ने इस बयान के साथ यह साफ कर दिया कि वो इस मामले में पूरी तरह से भारतीय टीम के फैसले के साथ हैं।

“I’m 100% with them” – सचिन का साफ स्टैंड

सचिन ने यह भी कहा कि इस सीरीज़ में टीम इंडिया का हर खिलाड़ी – चाहे वो गंभीर हों, शुभमन गिल, जडेजा या वॉशिंगटन सुंदर, उन्होंने परिस्थिति के अनुसार खेल दिखाया और पूरे दिल से लड़ा।

“मैं टीम इंडिया के साथ हूं। चौथे टेस्ट में जब विकेट पर टिके रहना जरूरी था, तब सुंदर ने वो किया। और पांचवे टेस्ट में जब रन रेट बढ़ाना था, तब उन्होंने शानदार तरीके से आक्रमण किया। तो पूरा क्रेडिट उन्हें जाता है।”

इंग्लैंड को भी देखना होगा दर्पण

यह पूरा मामला सिर्फ एक हैंडशेक या ड्रॉ की पेशकश भर नहीं था, बल्कि यह दिखाता है कि जब कोई टीम हावी होती है, तो सामने वाली टीम उसे मनमानी करने का अधिकार नहीं देती। भारत की यही सोच इंग्लैंड को चुभ गई

सचिन के बयान ने इस बात को और मजबूती दी कि खेल की स्पिरिट का मतलब सिर्फ सज्जनता नहीं, बल्कि प्रत्येक टीम का अधिकार है कि वह खेल की परिस्थिति के अनुसार निर्णय ले

सीरीज़ का समापन: 2-2 की बराबरी और ढेरों यादें

इंग्लैंड ने इस सीरीज़ में लीड्स और लॉर्ड्स में जीत हासिल की, जबकि भारत ने एजबेस्टन और ओवल में बाज़ी मारी। अंतिम नतीजा 2-2 रहा, लेकिन इस सीरीज़ ने कई ऐसे पल दिए जो क्रिकेट इतिहास में यादगार बन गए।

  • जडेजा और सुंदर के शतक
  • स्टोक्स की नाराज़गी
  • दोनों टीमों के बीच मनोवैज्ञानिक लड़ाई
  • और सचिन तेंदुलकर का बिना लाग-लपेट के सपोर्ट

खेल में सम्मान, लेकिन मजबूरी नहीं

इस पूरे घटनाक्रम से यह सीख मिलती है कि खेल भावना का मतलब यह नहीं कि कोई टीम खुद को कमजोर साबित करे या विरोधी की शर्तों पर खेले। जडेजा और सुंदर ने जो किया, वह उनके आत्मसम्मान और टीम के लिए था।

सचिन तेंदुलकर जैसे क्रिकेट आइकन का समर्थन यह साबित करता है कि टीम इंडिया का रुख पूरी तरह न्यायोचित और प्रेरणादायक था।

आपकी राय क्या है?
क्या जडेजा और सुंदर का फैसला सही था? क्या बेन स्टोक्स को ज़्यादा भावुक होने की ज़रूरत नहीं थी? नीचे कमेंट करें और इस ब्लॉग को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें – ताकि उन्हें भी पता चले कि क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, आत्मसम्मान की भी बात है!

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